सिलाई वाली दीदी: जिसने कपड़ों से आत्मविश्वास सिला
गीता की उम्र महज 16 साल थी जब उसकी शादी हो गई। 20 साल की होते-होते वह तीन बच्चों की माँ थी और एक छोटे से कमरे में सास-ससुर के साथ रहती थी। उसका पति एक दिहाड़ी मजदूर था और कमाई बमुश्किल ही परिवार का पेट भर पाती थी।
एक दिन, गीता ने अपनी पड़ोसन को सिलाई करते देखा। वह कपड़े सीकर कुछ पैसे कमा रही थी। गीता के मन में एक इच्छा जागी - "काश मैं भी सिलाई सीख पाती।" लेकिन सिलाई मशीन खरीदने के पैसे कहाँ थे? और सीखने का समय कहाँ था तीन छोटे बच्चों की माँ के पास?
"मैं रोज शाम को अपनी खिड़की से बाहर देखती और सोचती - क्या मेरी जिंदगी सिर्फ़ रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष करते हुए ही बीत जाएगी? क्या मैं कभी अपने पैरों पर खड़ी हो पाऊँगी?"
एक दिन गीता की मुलाकात मीरा से हुई। मीरा एक एनजीओ में काम करती थी और महिला सशक्तिकरण पर कार्यशालाएँ चलाती थी। गीता ने अपनी इच्छा बताई। मीरा ने कहा - "आओ, मैं तुम्हें सिलाई सिखाती हूँ।"
पहले दिन, गीता के हाथ काँप रहे थे। सुई पकड़ना भी मुश्किल लग रहा था। लेकिन मीरा ने धैर्य से उसे सिखाया—
"पहले दिन मैंने सिर्फ़ एक सीधी रेखा सीखी। दूसरे दिन एक वर्ग। हफ्ते भर बाद मैंने अपने बच्चे के लिए एक छोटा सा कुर्ता सिला। जब मैंने उसे अपने बच्चे को पहनाया, तो मेरी आँखों में आँसू आ गए। यह मेरे हाथों की पहली कमाई थी, मेरी पहली जीत थी।"
इस तरह "सिलाई वाली दीदी" का जन्म हुआ - वह महिला जिसने सिलाई की मशीन से नहीं, सपनों की सिलाई शुरू की।
पहला सिलाई प्रशिक्षण केंद्र
स्थान: एक छोटा सा कमरा, मीरा के घर में
उपकरण: 2 पुरानी सिलाई मशीनें
पहली बैच: 5 महिलाएँ
पाठ्यक्रम: बुनियादी सिलाई से लेकर डिज़ाइनिंग तक
अवधि: 3 महीने
जैसे-जैसे गीता की कुशलता बढ़ती गई, वैसे-वैसे उसका आत्मविश्वास भी बढ़ता गया। उसने न सिर्फ़ सिलाई सीखी, बल्कि डिज़ाइनिंग, कटिंग और मार्केटिंग भी सीखी। 6 महीने बाद, उसने अपनी पहली सिलाई मशीन खरीदी।
"जिस दिन मैंने पहली बार अपने हाथों से कमाए पैसों से चावल खरीदे, उस दिन मुझे लगा जैसे मैंने दुनिया जीत ली हो। मैं सिर्फ़ चावल नहीं खरीद रही थी, मैं अपना स्वाभिमान खरीद रही थी।"
दीदी की सिलाई के मंत्र:
- धैर्य का धागा: हर टाँका सावधानी से लगाना
- सृजन की सुई: साधारण कपड़े से असाधारण डिज़ाइन बनाना
- टीम का ताना-बाना: महिलाओं को एकजुट करना
- गुणवत्ता की कैंची: हर उत्पाद में बेहतरीन काम
- विश्वास की बुनाई: हर महिला में आत्मविश्वास जगाना
गीता ने अकेले सफल होना पर्याप्त नहीं समझा। उसने अपने आसपास की अन्य महिलाओं को भी सिलाई सिखानी शुरू की। धीरे-धीरे उसका छोटा सा प्रशिक्षण केंद्र एक आंदोलन बन गया।
प्रशिक्षित महिलाएँ
प्रशिक्षण केंद्र
उत्पाद बने
कुल कमाई
आज गीता "सिलाई वाली दीदी" के नाम से मशहूर है। उसने न सिर्फ़ खुद आत्मनिर्भर बनी, बल्कि सैकड़ों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया। उसका संगठन अब स्कूल यूनिफॉर्म, अस्पताल के गाउन, होटल के यूनिफॉर्म और विभिन्न संस्थानों के लिए कपड़े सिलता है।
"लोग कहते हैं मैं कपड़े सिलती हूँ, लेकिन सच तो यह है कि मैं आत्मविश्वास सिलती हूँ। हर महिला जो सिलाई सीखकर अपने पैरों पर खड़ी होती है, वह मेरी सबसे बड़ी कमाई है।"
सीख:
सच्ची सशक्तिकरण वह नहीं जो किसी को कुछ दे दे, बल्कि वह है जो किसी में यह विश्वास जगा दे कि वह खुद कुछ कर सकता है। गीता की कहानी हमें सिखाती है कि छोटे कौशल भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। एक सिलाई मशीन सिर्फ़ कपड़े नहीं सीख सकती, वह जीवन भी सीख सकती है। महिला सशक्तिकरण का असली मतलब है - महिलाओं को यह विश्वास दिलाना कि वे सब कुछ कर सकती हैं।
अगले भाग की झलक:
"संगीत का डॉक्टर: जिसने सुरों से इलाज किया" — यह कहानी है उस व्यक्ति की जिसने संगीत के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य का इलाज खोजा। एक ऐसा संगीतकार जिसने सुरों को दवा बना दिया और हजारों लोगों को मानसिक पीड़ा से मुक्ति दिलाई।
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